नासमझ थी, सोचती रही सिखा रही हूँ तुम्हें, पर शुक्रिया…. मुझे इश्क़ सिखाने के लिए। नासमझ थी, सोचती रही सिखा रही हूँ तुम्हें, पर शुक्रिया…. मुझे इश्क़ सिखाने क...
अपनी बात को रखना सिखाने के लिए - शुक्रिया। अपनी बात को रखना सिखाने के लिए - शुक्रिया।
इतना भटके है गलियों में कि अंधे पता हमें बताने लगे हैं। इतना भटके है गलियों में कि अंधे पता हमें बताने लगे हैं।
मगर हमने भी तुम्हें सबक सिखाने की ठान ली है मगर हमने भी तुम्हें सबक सिखाने की ठान ली है
हरगोविंद जाग अब, कर अब ही तू जो नहीं कर पाया.....! हरगोविंद जाग अब, कर अब ही तू जो नहीं कर पाया.....!
इस कविता में मैंने "प्रेम" को कुछ पंक्तियों द्वारा दर्शाया है | इस कविता में मैंने "प्रेम" को कुछ पंक्तियों द्वारा दर्शाया है |